मै कौन हूँ?
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अनुगूँज
मै कौन हूँ? यह सवाल उठा था गौतम बुद्ध के मानस में और ना जाने कितने ही भारतीय सन्यासियों के मन में जो इस सवाल का उत्तर जानने के लिये वनगामी हुए। घबराइये मत या प्रसन्न न होइये, मै ऐसा कुछ भी नही करने वाला हूँ लेकिन जब लालों के लाल श्री समीर लाल जी ने टिप्पणी के द्वारा दुबारा
यही सवाल मेरी तरफ उछाल दिया है तो कुछ न कुछ लिखना तो लाजमी है।
मै एक इन्सान हूँ, भारतीय हूँ और बेहद आम किस्म का भारतीय हूँ, अपनी पहचान के बारे में लिखने लायक कुछ है ही नही। और नाम में क्या रखा है आखिर। अगर केवल सम्बोधन की समस्या है तो मै आपको पूरी पूरी आजादी देता हूँ कि आप जो जी में आये सम्बोधित करें। छाया जी, या छायावादी जी या और कुछ। मै एक छाया हूँ एक परछाईं, एक प्रतिबिम्ब मात्र और परछाईं की कोई पहचान नही होती। परछाई के साथ कोई पहचानपत्रक जुडा नही होता। परछाईं घटती है बढती है, गायब भी हो जाती है। तो मुझे बस ऐसी ही एक छाया समझ लीजिये।
छाया का धर्म, राज्य, जाति या क्षेत्र नही होता।
फिर भी मै मेरे बारे में कुछ लिखता हूँ।
परिवार रहा है बन्जारा किस्म का, बस कई राज्यों से सम्बंध रहा है। शायद मेरे किसी पूर्वज को यह शाप मिला होगा कि तुम्हारी दो पीढियॉ कभी एक शहर में तो क्या एक राज्य में भी नही रहेंगी तो मेरे परिवार का इतिहास रहा है राज्य दर राज्य भटकने का। और शायद मेरे साथ ये शाप कुछ ज्यादा रहा होगा तो मै भटक रहा हूँ देश दर देश दरवेशों की तरह। दिल में कहीं एक चाह है और बेहद तीव्र चाह है कि वापस मुझे जाना है अपने देश ही, आज नही तो कल, इस साल नही तो अगले साल, लेकिन जाना तो है जरूर ही वापस एक दिन। और बस हमेशा के लिये। लाख रो लूँ भ्रष्टाचार का रोना या प्रदूषण या देश के अविकसित होने का, कोई भी चीज मुझे डगमगा नही सकी अभी तक।
मेरा पेशा संगणक (कम्प्यूटर) से जुडा हुआ है तो यही कारण है कि जब तक जहॉ काम है अपनेराम हैं, काम खत्म तो बस राम राम है।
परदेश में दिनबदिन सान्स्कृतिक झटके लगते रहते हैं आखिर करूँ तो क्या करूँ हूँ तो विशुद्ध भारतीय ही।
एक झटका तब लगा था जब बेटे के लिये विद्यालय दाखिले के लिये भरे जाने वाले फार्म में माता पिता की वैवाहिक स्थिति के लिये दिये गये विकल्पों को देखा था। कुछ इस प्रकार थे -
१) विवाहित
२) तलाकशुदा
३) साथ में रहते हुए
४) अकेले
५) गोद लिया हुआ
खैर,
दूसरा सान्स्कृतिक झटका लगा था जब हमने एक महिला एवं अमरीकी सहकर्मी का कार्यालय में जन्मदिन मनाया और तीन दिन बाद उससे पूछने की गुस्ताखी कर बैठे कि जन्मदिन की शाम उसने क्या किया। खुश होकर दिया गया जवाब था "मैने मेरा जन्मदिन तीन दिनों तक मनाया। वो शाम मैने अपने उस पुरुष मित्र के साथ गुजारी जिसके साथ मै पिछले दो सालों से रहती हूँ और शादी का अबतक कोई विचार नही बना। अगला दिन मैने मेरी मॉ और उनके वर्तमान पति के साथ रात्रिभोज किया और उसके अगले दिन मै मेरे पिता और उनकी वर्तमान पत्नी के साथ थी।"
सच बताऊँ तो मेरा दिमाग आगे कल्पना न कर सका।
मालूम नही बाकी के भारतीयों के मन की हालत कैसी होती है इस देश में जब वो ये सब देखते सुनते हैं।
मै कुछ ऐसे भी भारतीयों को जानता हूँ जो ग्रीन कार्ड के इन्तजार में कुंवारे बैठे हैं। असल में माजरा यह है कि वो यहॉ किसी प्रकार के बहुत सीमित समय के वीसा पर आये थे, जैसे ज्यादातर विद्यार्थी वीसा पर और अपनी पढाई पूरी करके नौकरी करने लगे। अब ये लोग वापस इसलिये नही जा सकते क्योंकि अगर गये तो वापस लौट नही सकते। इन्हे फिर से कोई अमरीकी दूतावास वीसा नही देगा, क्योंकि इन्होने पहले पाये हुए वीसा का अतिक्रमण किया है। ग्रीन कार्ड की अप्लीकेशन लम्बित है अमरीका में। तो क्या हुआ अगर शादी की उम्र निकली जा रही है, तो क्या हुआ अगर घर में बूढे मॉ बाप सालों से इन्तजार कर रहे हैं कि बेटा आयेगा एक दिन। भारत में शादी के साथ एक समस्या है, अपनी खुद की शादी में और कोई हो या न हो तुम्हे तो उपस्थित होना ही पडता है। तो अगर भारत नही जा सकते तो शादी भी नही कर सकते। क्योंकि जिस चीज के लिये इतनी मेहनत की और पसीना बहाया (अच्छी लडकी और अच्छा दहेज) वो तो भारत में ही मिलेगा ना। अब लडकी वाले तो अमरीका आकर शादी करने से तो रहे। बस कट रही है जिन्दगी इन्तजार में उस छलावे के जिसका नाम है ग्रीन कार्ड।
कुछ ऐसे भी भारतीय परिवार हैं जिनके बडे बुजुर्ग, जो कुछ बीस तीस साल पहले यहॉ आये थे, अब वापस जाना चाहते हैं, पर उनकी यहॉ जन्मी और पली बढी सन्तानों ने विद्रोह कर दिया है। अगर कोई बच्चा अमरीका में पैदा हुआ तो वो कानूनन् अमरीकी नागरिक होता है मैने मेरे आसपास के भारतीय परिवारों में अमरीका में रहते हुए ही बच्चा पैदा करने की होड सी देखी है। मेरे एक विदेशी मित्र के एक समय के उद्गार मुझे याद आते हैं, जिधर देखो बस गर्भवती भारतीय महिला ही नजर आती है। खून का घूँट पीकर मै चुप रह गया था, क्योंकि सच ही था।
खैर, तो मै बात कर रहा था उन भारतीय परिवारों की जिनके बडे बुजुर्ग अब वापस जाना चाहते हैं पर सन्तानें नही जाना चाहतीं। अब सन्तानें हैं अमरीकी नागरिक, तो मॉ बाप की भला क्या हैसियत। एक बार बच्चे दस बारह साल के हुए नही कि सान्स्कृतिक अन्तर या बदलाव दो पीढियों के अन्तर्विरोधों में बदल जाता है। आखिरकार मॉ बाप को हारकर झुकना पडता है, भारत न जाकर यहीं रहना पडता है क्योंकि बच्चे कह देते हैं कि आपको जाना हो तो जाइये, मै तो यहीं रहूँगा या रहूँगी। जबरदस्ती किसी अमरीकी नागरिक को भारत ले जा नही सकते और हैं तो आखिरकार भारतीय मॉ बाप ही ना, तो अपनी औलाद को छोडकर भला कैसे चले जायें। पडें हैं परदेश में औलाद की खातिर।
अगर आप एक पुत्री के पिता हैं तो आप आसमान से नीचे गिरते हैं जब आपकी बारह साल की लडकी रात भर घर से बाहर रहने के लिये अनुमति माँगती है या सप्ताहाँत में गायब रहती है। रास्ते चलते आप क्या करेंगे जब आपका बच्चा आपके साथ है और सामने हो रहा है लाइव टेलीकास्ट चुम्बन का। कुछ समय बाद बच्चे खुद ही समझदार हो जाते हैं और इन्हे जीवन की सामान्य घटनाओं की तरह नजरअन्दाज कर देते हैं, लेकिन आप अपने दिल का क्या करेंगे।
कितनी ही बार मैने बस में बेहद छोटे उम्र के बच्चों को वयस्कों को भी शर्मा दे ऐसी हरकतें करते देखा है, कोई शर्म नही, लिहाज नही। जब जब मै किसी बुजुर्ग के लिये अपनी सीट छोडकर खडा हुआ उन्होने अचरज से कहा unlike your age, मतलब तुम्हारी उम्रवाले ऐसा नही करते आमतौर पर। कई बार तो मैने युवाओं को बडी ढिठाई के साथ बुजुर्गों के लिये आरक्षित सीटों पर जमे पाया और बुजुर्गों को उनके सामने खडा। कान में आईपाड या एम पी ३ लगाये ये युवा या बच्चे मशीनी सम्वेदनहीनता का ऐसा भद्दा अमरीकी चेहरा प्रस्तुत करतें हैं कि मन सोचने लगता है कि इस देश में बसने का निर्णय कोई भारतीय कैसे ले सकता है।
अब तक मै मेरे किसी भी पोस्ट में किसी भी व्यक्ति का या स्थान का नाम लेने से बचता रहा हूँ। मेरा मानना है कि घटनायें और वो भी सच्ची घटनायें व्यक्ति या स्थान जैसी संज्ञाओं से ऊपर होती हैं। लेकिन मै भारत के एक प्रदेश का नाम लेना चाहता हूँ, आन्ध्रप्रदेश, मैने भारत के इस अकेले राज्य से अमरीका में कितने ही विद्यार्थी देखे। कुछ विद्यार्थियों से पूछा भी यार ऐसा क्यों है, कि जो भी भारतीय विद्यार्थी मिलता है वो आन्ध्र का ही होता है, तो उनका जवाब था कि "आन्ध्र समाज में अमरीका जाने पर लडके की कीमत बढ जाती है, और उन विद्यार्थियों के लिये जो अमरीका आना चाहते हैं बहुत सारे दिशानिर्देश सहज ही उपलब्ध हैं। आपको लगभग हर घर में एक विद्यार्थी या नौकरीशुदा व्यक्ति तो मिलेगा ही जो अमरीका में हो। हर विद्यार्थी विद्यालय में पढते समय ही पूरा प्लान बना चुका होता है कि वो किस अमरीकी यूनिवर्सिटी में दाखिले का प्रयास करेगा।" मैने पाया कि आन्ध्र समाज के बहुत बडे और समर्थ समूह हर जगह मौजूद हैं जो किसी भी आन्ध्रप्रदेशी विद्यार्थी या नौकरीशुदा व्यक्ति की यथासम्भव मदद के लिये तैयार रहते हैं।
कहॉ लिखने बैठा था मै अपनी पहचान के बारे में और कहॉ भटक गया।जब भी कोई भारतीय यहॉ मुझे मिलता है, छूटते ही प्रश्न तैयार, भारत में कहॉ से? ऐसा क्यों, अरे भाई भारत से हूँ क्या यही कम नही, किसी प्रदेश का लेबेल लगाना जरूरी है क्या? मुझे मालूम है कि सामने वाला मुझे अपनी कसौटी में कसने को बेताब है।
दक्षिण भारतीय या उत्तर भारतीय?
उत्तर भारतीय हैं तो किस प्रदेश से?
दक्षिण भारतीय हैं तो केरल के मालाबारी या तमिल या तेलगु या फिर कन्नड।
उत्तर भारतीय हैं तो ठाकुर, ब्राह्मण या वैश्य हैं या फिर कुछ और।
ब्राह्मण तो कौन से, सरयूपारीण या कान्यकुब्ज, या फिर सनाढ्य या गौड या ....।
महाराष्ट्रियन हैं तो कोंकनस्थ हैं या देशस्थ, मराठा या फिर सीकेपी या ....।
उडिया है पन्जाबी हैं या बंगाली हैं, भारतीय अजनबी के लिये आपकी जाति, क्षेत्र आपसे पहले आता है, और जब सवालों के जवाब मिल जाते हैं तो आपके लिये उसके पास पूर्वागृहों का पूरा पूरा खाका तैयार हो जाता है। अच्छा तो ये बन्दा हिन्दी बोलने वाला उत्तर भारतीय है, हुँह, गन्दे लोग, यही हैं जिन्होने भारतीयों की छवि खराब कर रखी है। या अच्छा तो ये बन्दा हिन्दी विरोधी, साम्बर खाने वाला दक्षिण भारतीय हैं, हुँह, पता नही अपने आपको क्यों श्रेष्ठ समझते हैं ये लोग।
भारत में इतने अन्तर्विरोध हैं और हम बाहर जाकर भी उनका टोकरा लादे घूमते हैं, क्यों?लाख अमरीकी सभ्यता या सन्स्कृति से मै सहमत न होऊँ लेकिन इस बात की मै जरूर दाद दूंगा कि ज्यादातर अमरीकियों के लिये आप क्या हैं ये मायने रखता है कि आप वास्तव में क्या हैं? आप कितने काम के आदमी हैं? बस, आपकी जाति आदि बहुत पीछे छूट जाती है, पर मैने "ज्यादातर अमरीकियों के लिये" उपयोग किया क्योंकि, क्योंकि कुछ पागल आपको हर जगह, हर देश, हर सन्स्कृति में मिलेंगे।
बस अब बस करता हूँ। इस उम्मीद के साथ कि अब मुझसे मेरी पहचान नही पूछी जायेगी।
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