वापस आया अलविदा कहने
मित्रों, मै वापस तो आया हूं, लेकिन केवल अलविदा कहने। जिंदगी में भागते भागते यह अहसास ही नही हुआ कि आपको अंतिम संदेश भेजे लगभग एक साल हो गया। मै मेरे बहुत से मित्रों का शुक्रगुजार हूं कि उन्होने मुझे भुलाया नही। खासतौर पर मनीष भाई, रत्ना जी, संजय बेगाणी, सेहर (Dawn) और जगदीश भाटिया साहेबान का, जिन्होने अपने लेखों में या पत्र लिखकर मुझे याद रखा।
इस अनुपस्थिति के वक्त में मै बीच बीच में कभी नारद या चिठ्ठाचर्चा पर वापस आता रहा और जब भी आया, बहुत से नये चिठ्ठाकारों को पाया, सब कुछ बदला बदला लगा, रंग रूप, माहौल, कलेवर, लोग, विषय, चर्चायें और अनायास ही नैपथ्य में कहीं यह गीत गुंजायमान हो उठा
फिर से यह लेख लिखने के असली मुद्दे पर वापस आता हूं, "वापस आया हूं लेकिन केवल अलविदा कहने" और आपसे यह अनुरोध करने कि मेरे लिये अब चिठ्ठाकारी आगे संभव नही है। बहुत दिनों तक ऊहापोह में रहने के बाद और अपने आप से अनगिनत झूठे वादे करने के बाद, वापस लौटने के हरसंभव असफल प्रयास करने के बाद और यह जानने के बाद कि कुछ बेहद आशावादी लोग (जिन्हे मैं तहेदिल से सलाम करता हूं) अभी भी यह आशा करते हैं कि ---- शायद--- शायद एक दिन मै वापस आऊंगा, मुझे उन उम्मीदों को तोडना जरूरी लगा नही तो दिल पर जीवन भर के लिये एक बोझ रह जाता। मेरे मित्रों मुझे माफ करना, मै शायद आपमें से बहुतों की उम्मीदों पर खरा नही उतर सका, जिंदगी की व्यस्ततायें मुझसे जीत गईं और मै हार गया और हां हो सके तो कृपया मुझे भूल जाइयेगा।
मुझे बहुत खुशी है कि हिंदी का अभियान दिनोंदिन बुलंद होता जा रहा है। वह दिन दूर नही जब १२५ करोड की आबादी के ७० करोड हिंदी-भाषियों में से कम से कम ७ हजार तो हिंदी चिठ्ठाकार होंगे (हर एक लाख में एक चिठ्ठाकार) और उस दिन का मुझे इंतजार होगा, और मुझे यकीन है आपमें से बहुतों को होगा।
जाते जाते नारद या अन्य किसी भी हिंदी एग्रीगेटर के कर्ता धर्ता बंधुओं से करबद्ध अनुरोध रहेगा कि यदि आसानी से संभव हो तो इस चिठ्ठे को अपने एग्रीगेटर से निकाल दें, क्योंकि इस पर अब कोई भी लेख नही लिखा जायेगा। एक बात और, पिछले वर्ष बहुत से लेखों में मैने लिखा था, मै पूरी तरह से भारत वापस जाना चाहता हूं, तो मै अपनी उस बात पर कायम हूं और यदि भगवान ने चाहा तो यह जल्द ही होगा।
मेरे पुराने लेख यहीं यथावत् छोडे जा रहा हूं, शायद इनमें से कुछ किसी दिन आपमें से किसी के काम आयेगा। कृपया भावुक संदेश देकर मुझे वापस बुलाने की कोशिशें न करियेगा। यह मेरा अंतिम लेख, और आपसे अंतिम संवाद है। आप सभी को आने वाले जीवन के लिये मंगलकामनायें और अलविदा। जय हिंद, जय भारत और जय हिंदी। अलविदा खुदा हाफिज़।
इस अनुपस्थिति के वक्त में मै बीच बीच में कभी नारद या चिठ्ठाचर्चा पर वापस आता रहा और जब भी आया, बहुत से नये चिठ्ठाकारों को पाया, सब कुछ बदला बदला लगा, रंग रूप, माहौल, कलेवर, लोग, विषय, चर्चायें और अनायास ही नैपथ्य में कहीं यह गीत गुंजायमान हो उठा
"आइना मुझसे मेरी पहली सी सूरत मांगे --------- इस बदलती हुई दुनिया का खुदा कोई नही, सस्ते दामों में यहां रोज खुदा बिकते हैं------ मेरे अपने मेरे होने की निशानी मांगे---"
(खासतौर पर आइना वाले जगदीश भइया की भावुक ई-मेल के बाद यह गीत बहुत याद आया, माफ करियेगा जगदीश भइया, मै उत्तर न दे सका)। तो मेरे अपनों, मै जीवित हूं, सकुशल हूं और लगा हूं दौड में जिंदगी की जो शायद सांसें रुक जाने के बाद ही थमेगी।फिर से यह लेख लिखने के असली मुद्दे पर वापस आता हूं, "वापस आया हूं लेकिन केवल अलविदा कहने" और आपसे यह अनुरोध करने कि मेरे लिये अब चिठ्ठाकारी आगे संभव नही है। बहुत दिनों तक ऊहापोह में रहने के बाद और अपने आप से अनगिनत झूठे वादे करने के बाद, वापस लौटने के हरसंभव असफल प्रयास करने के बाद और यह जानने के बाद कि कुछ बेहद आशावादी लोग (जिन्हे मैं तहेदिल से सलाम करता हूं) अभी भी यह आशा करते हैं कि ---- शायद--- शायद एक दिन मै वापस आऊंगा, मुझे उन उम्मीदों को तोडना जरूरी लगा नही तो दिल पर जीवन भर के लिये एक बोझ रह जाता। मेरे मित्रों मुझे माफ करना, मै शायद आपमें से बहुतों की उम्मीदों पर खरा नही उतर सका, जिंदगी की व्यस्ततायें मुझसे जीत गईं और मै हार गया और हां हो सके तो कृपया मुझे भूल जाइयेगा।
मुझे बहुत खुशी है कि हिंदी का अभियान दिनोंदिन बुलंद होता जा रहा है। वह दिन दूर नही जब १२५ करोड की आबादी के ७० करोड हिंदी-भाषियों में से कम से कम ७ हजार तो हिंदी चिठ्ठाकार होंगे (हर एक लाख में एक चिठ्ठाकार) और उस दिन का मुझे इंतजार होगा, और मुझे यकीन है आपमें से बहुतों को होगा।
जाते जाते नारद या अन्य किसी भी हिंदी एग्रीगेटर के कर्ता धर्ता बंधुओं से करबद्ध अनुरोध रहेगा कि यदि आसानी से संभव हो तो इस चिठ्ठे को अपने एग्रीगेटर से निकाल दें, क्योंकि इस पर अब कोई भी लेख नही लिखा जायेगा। एक बात और, पिछले वर्ष बहुत से लेखों में मैने लिखा था, मै पूरी तरह से भारत वापस जाना चाहता हूं, तो मै अपनी उस बात पर कायम हूं और यदि भगवान ने चाहा तो यह जल्द ही होगा।
मेरे पुराने लेख यहीं यथावत् छोडे जा रहा हूं, शायद इनमें से कुछ किसी दिन आपमें से किसी के काम आयेगा। कृपया भावुक संदेश देकर मुझे वापस बुलाने की कोशिशें न करियेगा। यह मेरा अंतिम लेख, और आपसे अंतिम संवाद है। आप सभी को आने वाले जीवन के लिये मंगलकामनायें और अलविदा। जय हिंद, जय भारत और जय हिंदी। अलविदा खुदा हाफिज़।
11 प्रतिक्रियाएँ:
प्रेषक:
Udan Tashtari [
Thursday, July 05, 2007 7:01:00 PM]…
आंसू बहवा दिये.ऐसा भी क्या है...कभी जब मन करे दो लाईन लिख देना,,,हम सब खुश हो जायेंगे..याद है कि हमने तुम्हारी एक बार बहुत मौज ली थी और अब तुम्हीं चले जा रहे हो...यह हम कैसे बर्दाश्त करें, खुद बताओ. यह सही नहीं..ऐसा मत कहो कि अब कभी नहीं. बस यह कहो कि जब भी संभव हुआ तब...हम इन्तजार करेंगे मित्र. एक बार कह दो...कि आओगे!!
प्रेषक:
रवि रतलामी [
Thursday, July 05, 2007 9:56:00 PM]…
बंधु,
पर ये जान लें कि आप वापस आएंगे. हमारी भविष्य वाणी है - किसी न किसी रूप में आप वापस आएंगे जरूर. :)
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Manish Kumar [
Thursday, July 05, 2007 10:07:00 PM]…
ई-छाया,आपके के विचारों को आपके लेखों के माध्यम से पढ़कर जितना भी वक्त गुजरा वो अच्छा लगा और जब भी वो मसलें फिर उठेंगे आपकी याद जुरूर दिलाएंगे, उन यादों से तो नहीं भाग सकेंगे आप।
ना , मैं आपको वापस नहीं बुला रहा। जीवन की अन्य प्रतिबद्धताओं की तुलना में चिट्ठाकारी तो एक तुच्छ सी चीज है और आपका निर्णय आपकी अपनी विवशताओं की वजह से ही लिया गया होगा।।
हम ही लोग आज समय दे पा रहे हैं। क्या पता कल हों ना हों...........
प्रेषक:
ePandit [
Friday, July 06, 2007 5:20:00 AM]…
आपको अधिक पड़ा तो नहीं लेकिन जब भी कोई हिन्दी चिट्ठाकार लिखना बंद करता है तो मुझे बुरा लगता है। जैसे आप पिछले एक साल से न लिखते हुए भी चिट्ठाकार थे उसी प्रकार आगे भी बने रहें। कोई कितना भी व्यस्त क्यों न हो वो महीनों में एक-दो लाइनें तो लिख ही सकता है, चिट्ठाकार बने रहने के लिए यह काफी है (आलोक जी का उदाहरण सामने है)
उम्मीद है आप फिर वापस आएंगे, क्योंकि हिन्दी प्रेम जाता नहीं आसानी से।
प्रेषक:
Anonymous [
Friday, July 06, 2007 11:26:00 AM]…
why am i crying after reading this?
प्रेषक:
Unknown [
Thursday, October 25, 2007 10:40:00 PM]…
I really liked ur post, thanx for sharing. Keep writing. I discovered a good site for bloggers check out this www.blogadda.com, you can submit your blog there, you can get more auidence.
प्रेषक:
admin [
Thursday, July 31, 2008 12:22:00 AM]…
ह दिन दूर नही जब १२५ करोड की आबादी के ७० करोड हिंदी-भाषियों में से कम से कम ७ हजार तो हिंदी चिठ्ठाकार होंगे।
आमीन। सुम्मा आमीन।
ईश्वर चाहेगा, तो जल्द से जल्द ऐसा होगा।
प्रेषक:
Anonymous [
Thursday, January 22, 2009 5:50:00 PM]…
Hmmm... ek aur banda likhna band kar raha hai... bad... any way.. all the best man.
प्रेषक:
Anonymous [
Saturday, August 22, 2009 2:37:00 AM]…
kyon aaye vapas nahi aana chahiye the smajhe janab
प्रेषक:
Rahul [
Monday, March 26, 2012 11:37:00 AM]…
Gum ke sagar me khabhi doob na jana,
Manjil na payo toh toot na jana,
Zindgi me agar dost ki kami mehsush ho
Toh hum jinda ye bhool na jaana.....
प्रेषक:
Fashion Photographer [
Sunday, September 15, 2013 9:44:00 PM]…
Well...
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