कुछ पंक्तियॉ
मालूम नही कविता है या भडौवा है या कुछ और, मेरे लिये मात्र विचारों का प्रवाह है।
नोश फरमाइयेगा -
बार बार बहका जब जब सोचा लगाम को कस लें।
याद आये तब तब कुछ बीते भूले बिसरे मसले।।
जो हैं तटस्थ या निरपेक्ष या चुप ये आज समझ लें।
लेंगी हिसाब उनसे उनकी आने वालीं नसलें।।
नोश फरमाइयेगा -
बार बार बहका जब जब सोचा लगाम को कस लें।
याद आये तब तब कुछ बीते भूले बिसरे मसले।।
जो हैं तटस्थ या निरपेक्ष या चुप ये आज समझ लें।
लेंगी हिसाब उनसे उनकी आने वालीं नसलें।।
5 प्रतिक्रियाएँ:
प्रेषक: Udan Tashtari [ Wednesday, May 31, 2006 1:51:00 PM]…
नोश फरमाया, छाया भाई. वाकई, बहुत कोशिश की और एक दो जानकारों के पास भी गया पूछने, बस यही निष्कर्ष निकला कि:
मालूम नही कविता है या भडौवा है या कुछ और, मगर सबके मत मे विचारों का प्रवाह या यू कहें कि विचारों का लेखन (प्रवाह तो अलग चीज होती है ना)है।
:)
अरे छाया भाई, बुरा मत मानना, मज़ाक कर रहा हूँ, बढिया है, अब जो भी है.
समीर लाल
प्रेषक: Pratyaksha [ Wednesday, May 31, 2006 9:40:00 PM]…
दिनकरजी की ये पंक्तियाँ याद आ गईं
समर शेष है , नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध
प्रेषक: ई-छाया [ Thursday, June 01, 2006 11:54:00 AM]…
धन्यवाद समीर जी एवं प्रत्यक्षा जी,
समीर जी, सच कहा है आपने, ये लेखन है, प्रवाह नही।
प्रत्यक्षा जी, दिनकर जी की पंक्तियॉ याद कराने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद। मेरे पिता जी दिनकर जी के बहुत बडे प्रशंसक हैं।
प्रेषक: Manish Kumar [ Friday, June 02, 2006 5:55:00 AM]…
अंदाज लगा सकता हूँ कि ये पंक्तियाँ आपने आज के माहौल को ध्यान में रखकर ही लिखी हैं ! लिखते रहें !
प्रेषक: ई-छाया [ Monday, June 05, 2006 12:08:00 PM]…
मनीष भाई, बिल्कुल सही पहचाना आपने।
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