पहली पोस्ट
बडे दिनो से सोच़ रहा था कि कुछ लिखू, अपना ब्लोग अकाउन्ट तो खोला पर लिखा कुछ भी नही, तो करता हू शुरुआत दोस्तो।
जय हिन्द जय भारत।
सबसे पहले मॉ को नमन "ॐ नमःश्चन्डिकायै"। समस्त गुरुजनो को नमन। माता पिता को नमन।
तो शुरु कहॉ से करू, क्या क्या लिखू, बडी दुविधा है। यादे है कि बस बान्ध तोड कर आती है। घटनाये रात दिन पीछा करती है। चेहरे यकबयक ही सामने आ जाते है। कोई क्रम नही, नियम नही। एक छोटी सी घटना से शुरुआत करता हू, आगे बहुत कुछ लिखूँगा। मेरे जीवन की अवसाद भरी घटना है ये।अभियान्त्रिकी स्नातक होने के बाद की बात है जब मुझे पता चला कि मेरे एक पडोसी बारहवी कछा के छात्र ने पी ई टी (अभियान्त्रिकी कोलेज मे दाखिला हेतु) देने से मना कर दिया है, क्यो? उसका कहना था, देखो (मेरी तरफ इशारा) इन्होने कौन सा तीर मार लिया है, बैठे है ना घर पर बेरोजगार। उसका कहना काफी हद तक सही था उन दिनो मै विविध परीछाऒ की तैयारी मे लगा था, लेकिन हर मिलने वाला था कि बस छूटते ही पूछता था "क्या कर रहे हो भैया" और फिर दुख प्रकट करता था कि "आजकल देखो, अभियान्त्रिकी स्नातक भी मारे मारे घूम रहे है"। यहा तक कि माता पिता लोगो से मुह चुराने लगे जब यही सवाल तरह तरह से पूछा जाने लगा। मैने छत पर घूमना कम कर दिया, बाहर जाता तो बिना किसी की तरफ देखे निकल जाता। शेष अगली बार।
जय हिन्द जय भारत।
सबसे पहले मॉ को नमन "ॐ नमःश्चन्डिकायै"। समस्त गुरुजनो को नमन। माता पिता को नमन।
तो शुरु कहॉ से करू, क्या क्या लिखू, बडी दुविधा है। यादे है कि बस बान्ध तोड कर आती है। घटनाये रात दिन पीछा करती है। चेहरे यकबयक ही सामने आ जाते है। कोई क्रम नही, नियम नही। एक छोटी सी घटना से शुरुआत करता हू, आगे बहुत कुछ लिखूँगा। मेरे जीवन की अवसाद भरी घटना है ये।अभियान्त्रिकी स्नातक होने के बाद की बात है जब मुझे पता चला कि मेरे एक पडोसी बारहवी कछा के छात्र ने पी ई टी (अभियान्त्रिकी कोलेज मे दाखिला हेतु) देने से मना कर दिया है, क्यो? उसका कहना था, देखो (मेरी तरफ इशारा) इन्होने कौन सा तीर मार लिया है, बैठे है ना घर पर बेरोजगार। उसका कहना काफी हद तक सही था उन दिनो मै विविध परीछाऒ की तैयारी मे लगा था, लेकिन हर मिलने वाला था कि बस छूटते ही पूछता था "क्या कर रहे हो भैया" और फिर दुख प्रकट करता था कि "आजकल देखो, अभियान्त्रिकी स्नातक भी मारे मारे घूम रहे है"। यहा तक कि माता पिता लोगो से मुह चुराने लगे जब यही सवाल तरह तरह से पूछा जाने लगा। मैने छत पर घूमना कम कर दिया, बाहर जाता तो बिना किसी की तरफ देखे निकल जाता। शेष अगली बार।
5 प्रतिक्रियाएँ:
प्रेषक: अनूप शुक्ल [ Friday, April 21, 2006 1:17:00 AM]…
स्वागत है लिखना शुरू करने पर। आगे भी इंतज़ार रहेगा।
http://hindini.com/fursatiya
प्रेषक: Ashish Shrivastava [ Friday, April 21, 2006 1:29:00 AM]…
नया चिठ्ठा शूरू करने की बधाई
अभियांत्रीकी के क्षेत्र मे एक समय ऐसा जरूर आया था ! जब मै द्वितिय वर्ष मे था, तब मेरा एक पडोसी जो बी एस सी कर ने के बाद ग्राम सेवक(महाराष्ट्र मे ग्राम पंचायत का सचिव) बन गया था मुझे सुनाया करता था कि "सडक पर एक पत्थर भी यदि फेंको तो किसी कुत्ते को ना लगकर इन्जीनियर को लगेगा"
http://ashish.net.in/khalipili
प्रेषक: पंकज बेंगाणी [ Friday, April 21, 2006 2:02:00 AM]…
आप बस लिखने की कोशीश करीए. लिखने के बहाने तो हज़ार मिलेंगे.
प्रेषक: ई-छाया [ Friday, April 21, 2006 5:01:00 PM]…
पंकज, आशीष एवम् परम आदरणीय फुरसतिया जी,
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद। अनुरोध है कि आप लोग आगे भी हौसला बढाते रहेंगे। मेरी दूसरी पोस्ट भी पढें.
प्रेषक: Anonymous [ Friday, April 21, 2006 7:32:00 PM]…
हिन्दी ब्लागजगत में आपका स्वागत है।
अब अगली पोस्ट पढ़ने जा रहा हूँ, बाकि वहीं पर!! :)
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