Friday, April 21, 2006

आगे की कहानी, वो कुछ साल

अगली पोस्ट से आगे। जो पाठक गण पहली बार पढ रहे है उनसे अनुरोध है कि पहले मेरी पहली पोस्ट यहॉ पढ ले।

बस फिर क्या था ये सिलसिला तो बढता ही गया। मेरे प्रयासो का कोई नतीजा नही निकलता नजर आया और असहायता, मजबूरियॉ, एकाकीपन आदि मुझे घेरने लगे। मेरा खुद पर से विश्वास उठ सा गया। अपने यहॉ किसी भी व्यक्ति के सबसे बडे समर्थक उसके घर वाले ही होते है जो उस समय तक मुझे एक बडे होनहार छात्र के रूप मे देखते थे। खास तौर पर पिता जी तो बस उदास से हो गये थे। बस एक दिन सुबह सुबह चाय वगैरा पी कर कही चले गये, वापस आये तो बडे बुझे से थे। धीरे धीरे राज खुला किसी मित्र सन्स्कृत अध्यापक एवम अन्शकालिक ज्योतषी के पास गये थे जिसने भविश्यवाणी कर दी थी कि आगे चार पॉच सालो तक मेरा ज्यादा कुछ भी नही होगा मतलब ऐसे ही चलेगा कमोबेश।

"असम्भव" मै बोला, "अगर आगे चार पॉच सालो तक मै ऐसे ही नौकरी ही तलाशता रह गया तो क्या ऒवरएज नही हो जाऊंगा।" और भला मेरा अभियान्त्रिकी स्नातक मन भला कैसे ऐसी दकियानूसी बात मान लेता, क्या वैज्ञानिक आधार है भला इसका। तो क्या हुआ अगर मेरे बाबा खुद एक ज्योत्षी थे। बकवास है ये सब। विज्ञान इन बातो को नही मानता।
यहॉ एक बात और जोडुंगा कि मानव मनोविज्ञान यूं कि बडा जटिल विषय है पर ज्यादातर हम उन बातो को नकारने की कोशिश करते है जो हमे पसंद नही आतीं, और इसके लिये हम विज्ञान या किसी और चीज का सहारा लेते है। शायद मेरे साथ ऐसा ही कुछ था।

कुछ समय और गुजरा और जाने क्यो वो बात मेरे मन को खटकने सी लगी, सारे विज्ञान के सिद्धान्तों पर खरी ना उतर सकने वाली ये बात कैसे सच हो सकती है। पर कुछ तो है जो मुझे रोक रहा है। कहीं न कहीं मुझे लगने लगा था कोई शक्ति मुझे रोक रही है। क्या कुछ ऐसा है जो विज्ञान के सिद्धान्तों से ऊपर है। एक दिन मैने पिता जी से पूछ ही लिया, ये ज्योतिष क्या है? इसके क्या सिध्दान्त हैं? और उनका जवाब मुझे आश्चर्यचकित कर गया। वो बोले ये गणित है। "हुँह, गणित पर आपके मित्र तो सन्स्कृत अध्यापक हैं? गणित तो हमारा विषय है अभियन्ताऒं का। ठीक है मै खुद पढूंगा देखता हू क्या गणित है ये"

बस फिर क्या था मैने थोडा थोडा करके ज्योतिष पढना शुरू किया। बाबा जी के समय की कुछ पुस्तकें थीं, कुछ Astroligical magzene से और कुछ Times Of India में एक स्तम्भ आता था पहले, उससे धीरे धीरे सीखना शुरू किया। नया नया मुल्ला रोज पॉच बार नमाज पढता है, तो मैने मेरी ही कुन्डली बनाई और शुरू हो गया। धीरे धीरे मुझे समझ मे आने लगे ज्योतिष के पुरातन सिद्धान्त। मैने देखा सच मे वैसा ही होने वाला था। शायद ये भी होनी ही थी कि मुझे ज्योतिष मे रुचि हो जाये। मैने पाया कि ज्योतिष पढना भी था मेरी किस्मत मे। और शायद प्रकृति मुझे तैयार कर रही थी आने वाले कुछ वषों के लिये।

अब ज्यादा ना खीचते हुए इतना ही लिखूंगा कि कालान्तर मे वो सब कुछ सच हुआ। मैने नौकरियॉ की और छोडीं। सन्क्षेप में कहूं तो भटकता नाखुश ही रहा। मेरे जीवन के वो कुछ साल शायद बेहद बुरे थे पर मैने बहुत कुछ सीखा उन कुछ सालों में। उन दिनों में भटकाव था लेकिन मै बहुत से लोगो से मिलता था, बहुत कुछ पढता था, सीखता था, शायद भगवान के भी ज्यादा करीब था। उन्ही कुछ सालों में मै धमॅभीरू बन गया। वो दिन हैं और आज है मै मानता हूं कि हम जो कुछ भी करते है हमें वापस मिलता है इस जन्म में या अगले में।

शायद मैने इस लेख को बहुत बोझिल कर दिया है इसलिये यही समाप्त करता हूं। यहॉ तक पढने के लिये धन्यवाद। कोई और विषय अगली बार, तब तक के लिये अलविदा।

8 प्रतिक्रियाएँ:

  • प्रेषक: Blogger Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी [ Friday, April 21, 2006 5:17:00 PM]…

    किसी भी कुंडली में एक स्थान होता है कर्म का। कुंडली में दसवा घर होता है कर्म और नौवां भाग्य। तो इस तरह नवम और दशम घर का संपर्क हुआ २:१२ जो कि क्लेश या शत्रुता का संपर्क है| तो ज़ाहिर है भाग्य से लड कर कर्म करके फ़ल पाना कठिन होता है मगर चूँकि कुंडली मे एक स्थान कर्म का होता है इसलिये इंसान की तकदीर के साथ साथ उसकी सफलता में कर्म और मन की शक्ति का हाथ ज़रूर होता है। अर्थात भाग्य को कुछ हद तक लड कर कर्म और विल पावर से बदला जा सकता है। मगर हाँ, ज्योतिष विद्या कोई बेकार की चीज़ नहीं है, दावे के साथ कह सकती हूँ। ये ज्योतिष विद्या की गलती नहीं बल्कि ज्योतिषियों की अल्पविद्या का नतीजा है जो गलत भविष्यवाणियाँ की जाती हैं।

     
  • प्रेषक: Anonymous Anonymous [ Friday, April 21, 2006 7:48:00 PM]…

    ज्योतिष विद्या कोई बेकार की चीज़ नहीं है, दावे के साथ कह सकती हूँ। ये ज्योतिष विद्या की गलती नहीं बल्कि ज्योतिषियों की अल्पविद्या का नतीजा है जो गलत भविष्यवाणियाँ की जाती हैं।
    हाँ, जैसे अपने समय के किसी महान ज्योतिषी ने नेपोलियन का हाथ देखकर कहा था कि वह सदैव सेना का मामूली अफ़सर ही रहेगा, कभी महान नहीं बनेगा!! ;)
    (ऐसा मैंने कहीं पढ़ा था, कहाँ, यह याद नहीं)

     
  • प्रेषक: Blogger संजय बेंगाणी [ Saturday, April 22, 2006 2:46:00 AM]…

    किसी ज्योतिषी ने अगर कहा हो कि मनमोहनसिंह प्रधानमंत्री बनेंगे तो कृपया नाम दे, मुझे 'अमित' कि कुण्डली बनवानी हैं

     
  • प्रेषक: Blogger Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी [ Saturday, April 22, 2006 1:04:00 PM]…

    अमित, क्या कभी इस विद्या को जानने की कोशिश की है? इसके लिये शौक होना ज़रूरी है, इसलिये ज़ोर नहीं दे सकती। पहले आज़माइये, किसी की कही सुनी बातों पर यकीं नहीं कीजिये। हाँ, जैसा मैंने कहा, ज्योतिष नहीं ज्योतिषियों की अल्पविद्या गलत भविष्यवाणियाँ करती हैं। मैं खुद साइंस की छात्रा हूँ, तर्क और युक्ति पर ही विश्वास करती हूँ, पर ज्योतिष का भी शौक़ है। पर जैसा मैंने कहा, कर्म के बिना तो कुछ हो ही नहीं सकता, तो कर्म से कैसे मुँह फ़ेर सकते हैं भई।:-)

     
  • प्रेषक: Blogger विजय वडनेरे [ Saturday, April 22, 2006 8:54:00 PM]…

    This comment has been removed by a blog administrator.

     
  • प्रेषक: Blogger विजय वडनेरे [ Saturday, April 22, 2006 9:03:00 PM]…

    ऐ भाईईईईईई,
    कोई है भाईईईईईईईई??
    :
    कोई मेरी भी कुंडली बना दे भाई.

    मैं कब तक युँ ही नून तेल लकडी के चक्कर में कुलबुलाता रहुंगा?
    कोई हैएएए???

    कोईईईईईई हैSSSSSS...???

     
  • प्रेषक: Blogger ई-छाया [ Monday, April 24, 2006 4:52:00 PM]…

    आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणियों के लिये धन्यवाद। मै मानसी जी से सहमत हूँ, ये ज्योतिष नही ज्योतिषियों का अल्पज्ञान है जो इस विद्या के बारे में भ्रान्तियॉ फैलाता है। विजय भाई, किसी अच्छी सी जगह अपनी कुन्डली बना लें।

     
  • प्रेषक: Blogger ई-छाया [ Monday, April 24, 2006 4:54:00 PM]…

    माफ कीजियेगा, लिन्क यह है।
    www.astrogyan.com

     

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