अन्तरजाल पर हिंदी के खजाने
आपमें से बहुत से लोगों को अन्तरजाल पर उपलब्ध हिंदी के बहुत से खजानों का पता होगा। मुझे भी बहुत से खजाने मिले हैं, एक पूरी सूची दे रहा हूँ, अगर आपको पहले से नही पता है, तो शायद आपके लिये ये जानकारियाँ रोचक हों।
पहले तो भारत की नामी गिरामी पत्रिकाओं की अन्तरजाल पर उपस्थिति देखते हैं।
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सबसे ऊपर रखता हूँ हमारे साथी चिठ्ठाकार अतुल भैया के संस्मरण। मुहावरेदार भाषा के धनी अतुल जी का लच्छेदार कहानियाँ सुनाने में कोई सानी नही लगता।
हिंदी की प्रख्यात लेखिका सूर्यबाला जी के वागर्थ में छपे संस्मरण।
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बहुत पहले की एक घटना याद आ रही है। बहुत से साथी चिठ्ठाकारों की ही तरह मुझे भी बचपन से ही पढने का कीडा काट चुका था और जो कुछ भी हमारी सीमा में पढने के लिये उपलब्ध होता, जल्दी से चाटकर नये की तलाश शुरू कर दी जाती थी। बहुत छोटा था मै और गरमी की छुट्टियों में दादा दादी के घर गया था। एक दिन महाभारत हाथ लग गयी और फिर क्या था, बस मै और वो किताब। दीन दुनिया की खबर जाती रही। खाना खाया या नही खाया, कुछ याद नही रहता था। मेरे दादा जी पढने को बुरा नही मानते थे, पर वो ये मानते थे कि इतनी छोटी उम्र में इतना ज्यादा पढना ठीक नही, थोडा खेलना कूदना भी चाहिये। लेकिन अब साल में एक दो महीने ही हमें देख पाते थे, तो इस विषय पर नाखुश होकर भी कुछ बोलते नही थे। एक दिन पिता के बचपन के एक मित्र पधारे और दादाजी ने शिकायती लहजे में मेरा परिचय दिया "इतनी छोटी उम्र में महाभारत पढ रहे हैं", पिता के मित्र ने जो जवाब दिया, उसे मैने गाँठ बांध लिया, और वो था "बाबू जी पुस्तकों का सबसे बडा सौभाग्य यही है कि कोई उसे पढे, मनुष्य की सबसे बडी मित्र पुस्तकें ही हैं"। इस बात को मैने जीवन में बखूबी महसूस किया है, और मेरे अच्छे मित्रों को मै हमेशा अपने पास ही रखता हूँ। आशा है आप आनन्द उठायेंगे, इन खजानों का, जो हमें अन्तरजाल पर उपलब्ध हैं, और इन खजानों के होने का अर्थ ही यही है कि इन्हे पढा जाय गुना जाय।
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बहुत पहले की एक घटना याद आ रही है। बहुत से साथी चिठ्ठाकारों की ही तरह मुझे भी बचपन से ही पढने का कीडा काट चुका था और जो कुछ भी हमारी सीमा में पढने के लिये उपलब्ध होता, जल्दी से चाटकर नये की तलाश शुरू कर दी जाती थी। बहुत छोटा था मै और गरमी की छुट्टियों में दादा दादी के घर गया था। एक दिन महाभारत हाथ लग गयी और फिर क्या था, बस मै और वो किताब। दीन दुनिया की खबर जाती रही। खाना खाया या नही खाया, कुछ याद नही रहता था। मेरे दादा जी पढने को बुरा नही मानते थे, पर वो ये मानते थे कि इतनी छोटी उम्र में इतना ज्यादा पढना ठीक नही, थोडा खेलना कूदना भी चाहिये। लेकिन अब साल में एक दो महीने ही हमें देख पाते थे, तो इस विषय पर नाखुश होकर भी कुछ बोलते नही थे। एक दिन पिता के बचपन के एक मित्र पधारे और दादाजी ने शिकायती लहजे में मेरा परिचय दिया "इतनी छोटी उम्र में महाभारत पढ रहे हैं", पिता के मित्र ने जो जवाब दिया, उसे मैने गाँठ बांध लिया, और वो था "बाबू जी पुस्तकों का सबसे बडा सौभाग्य यही है कि कोई उसे पढे, मनुष्य की सबसे बडी मित्र पुस्तकें ही हैं"। इस बात को मैने जीवन में बखूबी महसूस किया है, और मेरे अच्छे मित्रों को मै हमेशा अपने पास ही रखता हूँ। आशा है आप आनन्द उठायेंगे, इन खजानों का, जो हमें अन्तरजाल पर उपलब्ध हैं, और इन खजानों के होने का अर्थ ही यही है कि इन्हे पढा जाय गुना जाय।
7 प्रतिक्रियाएँ:
प्रेषक: Anonymous [ Wednesday, June 21, 2006 6:51:00 PM]…
जानकारी के लिए धन्यवाद । बिल्कुल सत्य कहा है । पुस्तकों के बिना जीवन रसहीन है ।
प्रेषक: ई-छाया [ Wednesday, June 21, 2006 8:32:00 PM]…
रत्ना जी,
धन्यवाद।
पता नही वेबदुनिया को मै कैसे भूल गया, खैर भूल सुधार कर ली है।
प्रेषक: अनूप शुक्ल [ Thursday, June 22, 2006 12:04:00 AM]…
अमर उजाला,दैनिक जागरण,दैनिक भास्कर आदि समाचार पत्र भी हैं नेट पर। काफी पहले अनुनाद सिंह ने पूरी लिस्ट बनायी थी ।हमारी निरंतर भी है भाई!
प्रेषक: अनुनाद सिंह [ Thursday, June 22, 2006 12:18:00 AM]…
अन्तर्जाल पर हिन्दी अभी अपनी बालावस्था में है और इसका तेजी से विकास हो रहा है | ऐसी अवस्था में अन्तर्जाल पर हिन्दी में हो रहे विभिन्न प्रयासों के बारे में जानकारी बहुत उपयोग की वस्तु है | आपके द्वारा इस दिशा में किया गया कार्य स्वागत योग्य है | मैने भी कुछ प्रयास किया है | यहाँ देखा जा सकता है :
प्रेषक: अनुनाद सिंह [ Thursday, June 22, 2006 12:24:00 AM]…
क्षमा कीजिये, कडी देना ही भूल गया | अन्तर्जाल पर हिन्दी के विभिन्न संसाधन यहाँ भी देखे जा सकते हैं :
http://pratibhaas.blogspot.com/2005/11/links-to-hindi-resources-on-web.html
प्रेषक: ई-छाया [ Thursday, June 22, 2006 11:47:00 AM]…
अनूप जी, अनुनाद जी, धन्यवाद।
मैने अनुनाद जी की सूची देखी, मेरी सूची के मुकाबले वृहत्तर है, मेरी सूची बेहद संक्षिप्त है उसके सामने, और शायद मेरी सूची की सारी सामग्री वहाँ पहले से ही उपलब्ध है।
प्रेषक: संगीता मनराल [ Friday, June 23, 2006 5:22:00 AM]…
जानकारी के लिए बहुत धन्यवाद छाया जी,
आपके ब्लाग पर हर नई पोस्ट को पढती जरूर हूँ| लेकिन आपको लिखना आज ही हो पाया|
“संस्कृतियाँ दो और आदमी एक” वाली पोस्ट बहुत पंसद आई|
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