इक जागी जागी रात
कल की रात भी इक जागी जागी रात थी।
दूर तनहाइयों से मुझको पुकारता रहा कोई।।
चँहुओर छाया था अँधियारा और घिरे घनेरे बादल।
घनघोर चलती पुरवाई थी, थी चाँदनी कँही सोई।।
जाने कहाँ कहाँ भटका मन, यादों में जग घूम लिया।
कितने पन्ने वापस आये, यादों की पुस्तक थी खोई।।
चेहरे आये लगे पूछने सवाल कुछ पहचाने से।
कितने ही पल बीत गये यूँ शुरू हुई जब किस्सागोई।।
जागी जागी रातों में ही चले आँधियां यादों की।
भावों के बादल हैं छाते चले अतीत की पुरवाई।।
हायकू बोले तो
पढ लो ज़रा
जागी जागी रातों में
क्या क्या होता
दूर तनहाइयों से मुझको पुकारता रहा कोई।।
चँहुओर छाया था अँधियारा और घिरे घनेरे बादल।
घनघोर चलती पुरवाई थी, थी चाँदनी कँही सोई।।
जाने कहाँ कहाँ भटका मन, यादों में जग घूम लिया।
कितने पन्ने वापस आये, यादों की पुस्तक थी खोई।।
चेहरे आये लगे पूछने सवाल कुछ पहचाने से।
कितने ही पल बीत गये यूँ शुरू हुई जब किस्सागोई।।
जागी जागी रातों में ही चले आँधियां यादों की।
भावों के बादल हैं छाते चले अतीत की पुरवाई।।
हायकू बोले तो
पढ लो ज़रा
जागी जागी रातों में
क्या क्या होता
2 प्रतिक्रियाएँ:
प्रेषक: Manish Kumar [ Thursday, June 08, 2006 9:34:00 AM]…
आपकी कविता पढ़ कर माया मेमसाब का ये गीत याद आ गया
छाया जागी......छाया....
अच्छा लिखा है आपने
हाइकू में अंतिम लाइन फिट नहीं बैठ रही कयोंकि अंतिम पंक्ति में ५ अक्षर होने चाहिये। संयुक्त अक्षर को एक अक्षर गिना जाता है। अगर यूँ बदल लें तो बात बन सकती है
पढ लो ज़रा
जागी जागी रातों में
क्या होता रहा !
प्रेषक: ई-छाया [ Thursday, June 08, 2006 2:20:00 PM]…
मनीष भाई, धन्यवाद पढने के लिये, सराहने के लिये, हाइकू के बारे में जानकारी बढाने के लिये और उसे सुधारने के लिये।
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