Wednesday, July 19, 2006

ग्रीष्मावकाश - I

मई महीने में अमेरिका के ही एक स्कूल में पढ रहे मेरे बेटे के स्कूल टीचर ने हमें सूचित किया "ग्रीष्मावकाश शुरू हुए, क्या आप बाहर कहीं जा रहे हैं?"
मेरा जवाब था "नही"
"तो आप ग्रीष्मावकाश में भी स्कूल शुरू रखेंगे"
"हां"

ये बात तो वहीं समाप्त हो गई, लेकिन, ग्रीष्मावकाश - दिमाग में घंटियाँ बजने लगीं और मन उड चला पीछे, कई साल पीछे।

पिता भारत में एक छोटे कस्बे में साधारण शासकीय शिक्षक थे। बेहद साधारण सा घर। पढाई ही हमारी पूजा थी। विद्यालय में मै अच्छा ही था। कारण था नियमित अध्ययन। पूरे साल भर नियमित तौर पर विद्यालय के अलावा सुबह दो घण्टे और शाम चार घण्टे अध्ययन अनिवार्य था। यही कारण था कि मेरी कापियां हमेशा दुरुस्त होती थीं और सबक हमेशा याद।

लेकिन यही कारण भी था कि ग्रीष्मावकाश का मुझे बेतरह इंतजार होता था, इस कठिन दिनचर्या से छुटकारा। कुछ ख्वाबों जैसे दिन। पूरे साल भर मै दिन गिनता, और आखिर वह दिन आ ही जाता। आज सोचता हूँ तो शायद दुनिया में कोई भी खुशी उस दिन की खुशी की बराबरी नही कर सकती। जब सालाना कक्षा का आखिरी इम्तहान होता और न जाने क्यों उस अंतिम पेपर को देने के बाद घंटी बजते ही दिल दिमाग और शरीर से जैसे मनों बोझ उतर जाता। उस एक पल में ही जाने क्या क्या बदल जाता। मन जैसे उडने लगता और पैर अपने आप गतिशील हो जाते।

अगर बोर्ड की परीक्षा नही है तो यह विद्यालय पर निर्भर करता था कि यह परीक्षा मार्च में हो या अप्रैल में। बोर्ड परीक्षायें (५वीं, ८वीं, १०वीं और १२वीं) मार्च में ही होती थीं। उस अंतिम पेपर के बाद वापस लौटते मै जैसे दुनिया का बादशाह होता था। लौटते ही पुरानी कक्षा की कापी किताबों को अपनी अलमारी से अलविदा कर देता। कहानी की भिन्न भिन्न पुस्तकों की गठरियां खुल जातीं। कई कहानियां, कई पुस्तकें तो मैने साल दर साल कितनी ही बार पढी होंगी। नंदन, चम्पक, पराग, इंद्रजाल कामिक्स, डायमंड कामिक्स, अमर चित्र कथा, लोटपोट, ट्विंकल, सुमन सौरभ, मधु मुस्कान आदि आदि तकरीबन दो तीन सौ पुस्तकें रही होंगी।

अगले दिन सुबह उठकर यह महसूस करता कि आज मुझे कुछ भी करना जरूरी नही है, कोई पढाई नही, कोई स्कूल नही, कोई होमवर्क नही, कोई जल्दबाजी नही, कुछ काम नही, बस मै, मेरी पुस्तकें और मेरे खेल, मेरे कुछ मेरे जैसे ही मित्र, जिनसे पुस्तकों का बाकायदा व्यावसायिक तरीके से लेन देन होता, मतलब इस हाथ ले, उस हाथ दे और इतना ही नही चार दे तो चार ही ले।

३० अप्रैल परीक्षा परिणाम का दिन होता था। ज्यादातर कक्षा में पहले दूसरे तीसरे किसी स्थान पर रहने के कारण कुछ पुरस्कार मिलता।

बाकी अगली बार...

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