Friday, July 14, 2006

अनुगूंज २१ कुछ और

Akshargram Anugunj

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सरदार जी दिल्ली गये। घंटाघर के पास उन्हे लगातार घडी की ओर निहारता देख एक व्यक्ति ने उन्हे प्रस्ताव दिया "आप यह घडी खरीद सकते हैं, लाइये हजार रुपये"। सरदार जी प्रसन्न हुए, फौरन हजार रुपये निकाल दिये। वह व्यक्ति "अभी सीढी लाता हूँ" कहकर गायब हो गया। काफी देर इंतजार करने के बाद सरदार जी को भान हुआ कि वे ठगे गये हैं। निराश वे सराय वापस चले गये। अगले दिन उसी जगह फिर से घडी देखते हुए वही व्यक्ति उन्हे मिल गया और उसने फिर से वही प्रस्ताव उन्हे दिया, सरदार जी सतर्क थे बोले "लेकिन इस बार सीढी लेने मै जाऊंगा"।
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दो सरदार एक क्लिनिक के बाहर बैठे थे, उनमें से एक जोरों से रो रहा था।
उनके बीच का संवाद
दूसराः "क्यों रो रहा है?"
पहलाः "मै खून की जॉच कराने आया था"
दूसराः "तो, डर गया क्या"
पहलाः "अरे उन्होने मेरी उंगली में छेद कर दिया"
अब दूसरा सरदार जोरों से रोने लगा
पहलाः "अब तुझे क्या हुआ"
दूसराः "अरे मै पेशाब की जॉच कराने आया हूं"
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दो सरदार एक होटेल पंहुचे और चाय के साथ जेब से सैन्डविच निकाल कर खाने लगे। "आप अपने खुद के सैन्डविच यहां नही खा सकते", होटेल मालिक ने विरोध किया। दोनों सरदारों ने तुरंत सैन्डविच बदल लिये।
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जसमीत कौर ने अपने पति संता को टी वी के आस पास पागलों की तरह कुछ ढूंढते हुए देखा।
जसमीतः "क्या खो गया"
संताः "मै देख रहा हूं कि कैमरा कहॉ छुपा रखा है इन लोगों ने"
जसमीतः "कैमरा, किसने, तुम्हे कैसे लगा कि कैमरा है"
संताः "अरे उन्हे कैसे पता कि मै क्या कर रहा हूँ"
जसमीतः "किसे कैसे पता"
संताः "अरे इन स्टार प्लस वालों को, वो महिला बार बार कैसे कहती है, आप स्टार प्लस देख रहे हैं, उसे कैसे पता चला?"
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बंदर और गेंद
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कुछ महाशय एक मधुशाला में बैठे बियर की चुस्कियां ले रहे थे। एकाएक एक महाशय एक बंदर के साथ वहाँ प्रविष्ट हुए। बंदर ने लोगों को तो परेशान नही किया, लेकिन वहाँ रखी वस्तुओं से छेडछाड करनी शुरू कर दी। उसके मालिक ने मधुशाला के कर्मचारियों को आश्वस्त किया "घबराइये नही, वैसे तो वह कुछ तोडेगा फोडेगा नही, ज्यादा से ज्यादा कुछ खा जायेगा, उसका पैसा मै दे दूंगा"। बंदर तीन चार बियर पी गया, प्याले तोडकर खा गया, ऐसा करके वह छोटा छोटा कुछ कुछ सामान खा गया। उसका मालिक मुस्कराता रहा, उसे आश्वस्त देख बाकी लोग भी निर्विकार भाव से बंदर को देखते रहे। अचानक बंदर को एक बडी क्रिकेट की गेंद मिल गई। इसके पहले कि कोई कुछ समझ पाता बंदर उसे भी गडप कर गया। खैर, उसका मालिक उठा, उसने पैसे दिये और रुखसत हुआ। लोगों ने भी चैन की सॉस ली। कुछ दिनों बाद वही महाशय उसी बंदर के साथ मधुशाला में हाजिर हुए। बंदर पुनः वस्तुयें निगलने लगा, लेकिन इस बार वह हर वस्तु को पीछे ले जाकर पहले पीछे से अंदर डालता, फिर खाता। लोगों को कौतूहल हुआ। उनके सवाल का जवाब देते हुए बंदर के मालिक ने बताया "जब से उसे वह गेंद निकालनी पडी, वह हर वस्तु को खाने से पहले उसका पहले पीछे ले जाकर माप लेता है, फिर खाता है"।

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